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अपमान करने वाला मनुष्य ईश्वरीय कृपा से विमुख हो जाता है
अपमान करके दान देना, विलंब से देना,
मुख फेर के देना, कठोर वचन बोलना और
देने के बाद पश्चाताप करना- ये पांच क्रियाएं दान को दूषित कर देती हैं।
एक बात हमेशा ध्यान रखों
कि समय और स्थिति कभी भी
बदल सकती है इसलिए कभी
किसी का अपमान मत करो
प्रकृति का नियम है कि जो जैसा करेगा उसे वैसा मिलेगा।
अगर मनुष्य दूसरों का अपमान करेगा तो उसे भी अपमान मिलेगा।
स्वयं का आत्मसम्मान बहुत बड़ी बात है।
गलत को सहना गलत को सहयोग देना होता है,
इसी तरह अपमान को सहना भी कोई बुद्धिमानी का काम नहीं है।
मनुष्य को संसार में अपने अपमान का डर कमज़ोर बनाता है
और सामना करने का सामर्थ्य मज़बूत बनाता है।
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